गोमेद और लहसुनिया एक साथ पहनने के फायदे

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रत्न शास्त्र में गोमेद और लहसुनिया दोनों ही शक्तिशाली और प्रभावशाली रत्न माने जाते हैं। ये रत्न अलग-अलग ग्रहों से जुड़े होते हैं और जीवन में विशेष लाभ प्रदान करते हैं। विशेष रूप से जब इन दोनों को सही तरीके से धारण किया जाए, तो यह जातक के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाते हैं।

गोमेद रत्न के फायदे

गोमेद रत्न के फायदे
गोमेद रत्न के फायदे
  • राहु ग्रह का रत्न: गोमेद रत्न (हस्सोनाइट/हनी गार्नेट) राहु ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है और राहु से जुड़ी समस्याओं को संतुलित करने में सहायक होता है।
  • मानसिक शांति और आत्मविश्वास: गोमेद रत्न (Gomed Stone) धारण करने से मानसिक भ्रम, नकारात्मक विचार और डर दूर होते हैं, जिससे आत्मविश्वास बढ़ता है।
  • सही निर्णय लेने की क्षमता: यह व्यक्ति को विवेकपूर्ण निर्णय लेने की शक्ति देता है।
  • व्यापार और करियर में लाभकारी: व्यापारी और प्रोफेशनल्स के लिए गोमेद रत्न करियर में स्थिरता और व्यापार में वृद्धि प्रदान करता है।
  • कानूनी मामलों में सफलता: कोर्ट-कचहरी या कानूनी विवादों में सफलता पाने के लिए गोमेद रत्न को शुभ माना जाता है।

लहसुनिया रत्न के फायदे

लहसुनिया रत्न के फायदे
लहसुनिया रत्न के फायदे
  • केतु ग्रह का रत्न: लहसुनिया रत्न (कैट्स आई स्टोन) केतु ग्रह से संबंधित है और जीवन में केतु के अशुभ प्रभावों को कम करता है।
  • बाधाओं और शत्रुओं से रक्षा: इसे धारण करने से अचानक आने वाली बाधाओं और शत्रुओं से सुरक्षा मिलती है।
  • एकाग्रता और आंतरिक शक्ति: लहसुनिया स्टोन (lehsunia stone) पहनने से मन एकाग्र होता है, आत्मबल बढ़ता है और आध्यात्मिक प्रगति होती है।
  • स्वास्थ्य में लाभकारी: यह रत्न गुप्त रोगों, नेत्र रोगों और लंबे समय से चली आ रही शारीरिक परेशानियों में विशेष रूप से सहायक है।
  • आध्यात्मिक उन्नति: साधकों और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वालों के लिए यह रत्न मानसिक शक्ति और ध्यान में गहराई लाता है।

Read Lehsunia Stone Benefits in Hindi

गोमेद और लहसुनिया एक साथ पहनने के फायदे

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब राहु और केतु दोनों ही जातक की कुंडली में अशुभ प्रभाव डालते हैं, तब गोमेद रत्न और लहसुनिया रत्न को एक साथ धारण करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। यह संयोजन व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जा, शत्रु बाधाओं और अचानक आने वाले संकटों से सुरक्षा प्रदान करता है। गोमेद राहु के अशुभ प्रभाव को कम करके साहस, आत्मविश्वास और कार्यक्षेत्र में स्थिरता देता है, वहीं लहसुनिया केतु के दोषों को शांत कर एकाग्रता, आध्यात्मिक उन्नति और आंतरिक शक्ति प्रदान करता है।

दोनों रत्न एक साथ पहनने से जातक को मानसिक शांति और सही निर्णय लेने की क्षमता प्राप्त होती है। यह संयोजन व्यापार में वृद्धि, करियर में प्रगति और जीवन में नए अवसरों के द्वार खोलने में सहायक होता है। इसलिए ज्योतिषियों और हस्तरेखाविदों के परामर्श से गोमेद और लहसुनिया एक साथ पहनना जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रभावी उपाय है।

गोमेद और लहसुनिया रत्न कैसे पहनें?

गोमेद रत्न और लहसुनिया रत्न को हमेशा किसी योग्य ज्योतिषी या हस्तरेखा विशेषज्ञ की सलाह से ही धारण करना चाहिए। किस हाथ और किस उंगली में पहनना है, यह जातक की कुंडली और हस्तरेखा के अनुसार तय किया जाता है। गलत तरीके से धारण करने पर इसके विपरीत प्रभाव भी हो सकते हैं।

गोमेद और लहसुनिया रत्न कब पहनें?

  • गोमेद रत्न को शनिवार या राहु काल में धारण करना शुभ माना जाता है।
  • लहसुनिया रत्न को मंगलवार या केतु से संबंधित शुभ मुहूर्त में पहनना लाभकारी होता है।
  • रत्न धारण करने से पहले संबंधित ग्रह के बीज मंत्र का जाप करने से फल शीघ्र प्राप्त होते हैं।

निष्कर्ष

गोमेद और लहसुनिया के फायदे तभी प्राप्त होते हैं जब इन्हें सही समय, विधि और ज्योतिषीय मार्गदर्शन के अनुसार धारण किया जाए। इन दोनों रत्नों का संयुक्त प्रभाव जीवन में सफलता, सुरक्षा और मानसिक संतुलन प्रदान करता है।

FAQs – गोमेद और लहसुनिया रत्न

1. क्या गोमेद और लहसुनिया एक साथ पहन सकते हैं?

हाँ। विशेष रूप से जब कुंडली में राहु और केतु दोनों का प्रभाव अशुभ हो तो गोमेद और लहसुनिया (ketu stone) को एक साथ पहनना लाभकारी माना जाता है। हालांकि इसे पहनने से पहले योग्य ज्योतिषी से परामर्श अनिवार्य है।

2. गोमेद के साथ कौन सा रत्न धारण करना चाहिए?

गोमेद के साथ लहसुनिया स्टोन सबसे उपयुक्त माना जाता है क्योंकि यह राहु-केतु संतुलन बनाने में सहायक होता है। परन्तु व्यक्तिगत कुंडली, दशा एवं उद्देश्य के आधार पर ज्योतिषी अलग सलाह दे सकते हैं।

3. क्या गोमेद और पन्ना एक साथ पहन सकते हैं?

आम तौर पर गोमेद और पन्ना (Panna Stone) को एक साथ पहनना सलाह नहीं दी जाती क्योंकि इनके ग्रह-क्वालिटी आपस में मेल नहीं खाते। इस तरह के संयोजन से उल्टा प्रभाव भी हो सकता है।

4. लहसुनिया किस उंगली में धारण करना चाहिए?

लहसुनिया को सामान्यतः मध्यमा (Middle Finger) या अनामिका (Ring Finger) में धारण करने की सलाह दी जाती है। सही उंगली का चयन आपकी कुंडली और हस्तरेखा के अनुसार ज्योतिषी तय करेंगे।

5. मुझे कैसे पता चलेगा कि मेरा रत्न काम कर रहा है?

जब रत्न प्रभाव दिखाने लगेगा तो आप जीवन में बाधाओं में कमी, मानसिक स्पष्टता, निर्णय-क्षमता में सुधार, भय/अनिद्रा में कमी या व्यवसाय में सुविधाजनक बदलाव महसूस कर सकते हैं। अगर उलटे लक्षण दिखें तो रत्न उतारकर विशेषज्ञ से परामर्श लें।

6. लहसुनिया रत्न के फायदे क्या हैं?

लहसुनिया (Cat’s Eye) के प्रमुख फायदे: केतु के दुष्प्रभाव को कम करना, अचानक संकटों से सुरक्षा, एकाग्रता व आत्मबल में वृद्धि, आध्यात्मिक उन्नति और नेत्र/गुप्त रोगों में लाभ।

7. लहसुनिया रत्न कितने दिन में असर दिखाता है?

लहसुनिया रत्न का प्रभाव भी व्यक्ति-विशेष के अनुसार अलग-अलग होता है; सामान्यतः 10–15 दिनों में लक्षण दिखने लगते हैं, पर कुछ लोगों को तुरन्त या समय के साथ धीरे-धीरे लाभ महसूस होता है।

8. गोमेद रत्न कितने दिन में असर करता है?

यह व्यक्ति की कुंडली और ग्रह दशाओं पर निर्भर करता है; सामान्य तौर पर कई लोगों को 10-15 दिनों के भीतर सकारात्मक बदलाव महसूस होने लगते हैं। कुछ मामलों में प्रभाव तुरंत या कुछ महीनों में भी दिख सकता है।

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Harsha Bhati (Articles: 27)

Harsha Bhati is one of the well-known palmists in India. She has been practicing palmistry for more than 7 years and has guided many people in understanding their life, career, and relationships. She holds a Diploma and a Master’s degree in Palmistry and is also doing her Ph.D. in the same subject.

Harsha also has knowledge of the Veds, which helps her give a deeper and more spiritual meaning to her readings. For the last 3 years, she has been teaching palmistry through her online school, where students from different places learn from her in a very simple and easy way.

She believes palmistry is not just about predicting the future, but about helping people know themselves better and grow in life. With her knowledge and kind approach, Harsha continues to inspire and guide many on their journey.

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